Monday, August 27, 2018

क्या सऊदी अरब का कुनबा बिखर जाएगा?

वो कहते हैं, ''सऊदी ने अमरीका का साम्यावाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में जमकर साथ दिया था. अफ़ग़ानिस्तान में तथाकथित जिहाद में सऊदी की अहम भूमिका रही थी और वहां से रूस को बाहर होना पड़ा था. हालांकि इसका असर यह हुआ कि अफ़ग़ानिस्तान तीन दशकों तक ख़तनाक युद्ध में फंसा रहा. परिणामस्वरूप तालिबान और अल क़ायदा का जन्म हुआ और 9/11 का हमला भी हुआ. अफ़ग़ानिस्तान आज भी गृह युद्ध जैसे हालात में ही है.''
अली अल-अहमद कहते हैं, ''सऊदी ने आर्थिक मदद देकर अपने ही नागरिकों को अफ़ग़ानिस्तान में लाल सेना से लड़वाया. अमरीका सऊदी अरब से इसे लेकर काफ़ी ख़ुश रहा कि उसने जो भी कहा, उसे सऊदी ने पूरा किया. शीत युद्ध ख़त्म होने के बाद सऊदी को अमरीका से अच्छे रिश्ते का ख़ूब फ़ायदा मिला. ईरान उसके ख़िलाफ़ कुछ कर नहीं पाया. आज की तारीख़ में ईरान सऊदी का जानी दुश्मन है. अमरीका भी ईरान को लेकर सऊदी की ही लाइन पर है. 1979 में जब ईरानी क्रांति हुई तो अमरीका ने सऊदी को महफ़ूज रखा. फ़ारस की खाड़ी में अमरीका का सैन्य ठिकाना है और वो इस पर हर साल 200 अरब डॉलर खर्च करता है. ज़ाहिर है सऊदी इस सैन्य ठिकाने से भी आश्वस्त रहता होगा.''
सऊदी अरब तेल उत्पादक देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) का सबसे बड़ा तेल उत्पादक और अहम देश है. ओपेक दुनिया के 40 फ़ीसदी तेलों को नियंत्रित करता है. अमरीका हाल के वर्षों तक दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक देश रहा है और इसलिए सऊदी के साथ उसकी दोस्ती और प्रासंगिक हो जाती है.
हाल के वर्षों में अमरीका ने अपनी ज़मीन से तेल का उत्पादन शुरू किया है. कहा जा रहा है कि आने वाले वक़्त में अमरीका के लिए सऊदी ज़रूरी नहीं रह जाएगा. अमरीका हर दिन 90 लाख बैरल तेल का उत्पादन कर रहा है जो कि सऊदी के लगभग बराबर है.
अमरीका को 80 फ़ीसदी
सीरिया, ईरान, इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष और मिस्र में लोकतंत्र के आने को लेकर दोनों देशों में मतभेद रहे हैं. सऊदी नहीं चाहता था कि अमरीका ईरान के साथ परमाणु समझौता करे, लेकिन ओबामा प्रशासन ने किया था. हालांकि ट्रंप ने आख़िरकार इस समझौते को तोड़ दिया.
क्या सऊदी अरब का कुनबा बिखर जाएगा?
कई विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले वक़्त में सऊदी अरब बुरी तरह से अस्थिर हो सकता है. इन विश्लेषकों का कहना है कि सऊदी कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है.
सऊदी की कमान अब पूरी तरह से क्राउन प्रिंस सलमान अपने हाथों में ले चुके हैं. उनके फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं. उन्हें अनुभवहीन कहा जा रहा है. शाही परिवार में सत्ता को लेकर काफ़ी उठापटक है.
क्राउन प्रिंस ने अपने कई चचेरे भाइयों को जेल में बंद कर दिया था. तेल की क़ीमत गिरती है तो सऊदी का बजट गड़बड़ा जाता है. यमन में सऊदी अरब एक ऐसी लड़ाई में उलझा है जिससे निकल नहीं पार रहा है.
पड़ोसी ईरान के साथ उसके संबंध ठीक नहीं हैं. अगर अमरीका तेल को लेकर सऊदी पर आश्रित नहीं रहता है तो सऊदी अरब के अस्थिर होने की आशंका काफ़ी बढ़ जाती है. और ये अस्थिरता सऊदी राजघराने को निश्चित तौर पर प्रभावित कर सकती है और उसके कथित सहयोगियों को भी.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
तेल उत्तरी और दक्षिणी अमरीका से मिलेगा और 2035 तक ये ज़रूरतें पूरी हो जाएंगी. उत्तरी अमरीका में तेल उत्पादन का यह बूम रहा तो वैश्विक राजनीति में बड़ी तब्दीली आएगी.
सऊदी और अमरीका के बीच मुख्य व्यापार तेल और हथियार का है. ओबामा प्रशासन ने सऊदी को 95 अरब डॉलर का हथियार बेचा था. सऊदी अरब के साथ अमरीका के मतभेद भी कई मुद्दों पर हैं.

No comments:

Post a Comment