Monday, August 26, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

अदालतों में मामलों के सालों घिसटने के कारण भी गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं, या फिर गवाही देने से ही मना कर देते हैं.
सालों कोर्ट के चक्कर काटने, पुलिस के सामने बार-बार घटना को दोहराने और समाज में बात फैलने से गवाहों के निजी जीवन पर गहरा असर पड़ता है.
अमरीका जैसे विकसित देश की तरह भारत में चश्मदीदों के लिए कोई आधिकारिक कार्यक्रम, क़ानून नहीं है, हालांकि सालों से विभिन्न लॉ कमीशन या क़ानून आयोग में इसे लेकर बात होती रही है.
साल 1971 में शुरु सुरक्षा कार्यक्रम में अमरीका में अभी तक 8,600 चश्मदीदों और उनके 9,900 परिवारजनों को इस कार्यक्रम के ज़रिए सुरक्षा, नई पहचान, नए दस्तावेज़, मेडिकल सुविधा दिए गए हैं.
ब्रिटेन में नेशनल क्राइम एजेंसी ऐसा ही कार्यक्रम चलाती है जिसमें लोगों के ब्रिटेन के भीतर और गवाह पर मंडरा रहे ख़तरे को देखते हुए कभी-कभी ब्रिटेन के बाहर भी भेज दिया जाता है. कुछ गवाहों की ज़िंदगी को ख़तरा इतना ज़्यादा होता है कि उन्हें अपने परिवार, दोस्तों को हमेशा के लिए अलविदा कहना पड़ता है क्योंकि ये रिलोकेशन या स्थानांतरण स्थायी होता है.
ऑस्ट्रेलिया में अप्रेल 1995 से शुरू नेशनल विटनेस प्रोटेक्शन प्रोग्राम गवाहों को सुरक्षा मुहैया करवाता है. विदेशी एजेंसियां और अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट भी विदेशियों और ऑस्ट्रेलिया से बाहर की नागरिकता वाले देशों को इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अनुरोध कर सकती हैं.
दिसंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भारत में एक विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम को हरी झंडी दी और कहा कि जब तक संसद इस पर क़ानून नहीं बनाती, ये स्कीम ज़मीन पर काम करेगी.
इस स्कीम के अंतर्गत गवाह को हर ज़िले में बनने वाली 'कंपीटेंट अथॉरिटी' को ऐप्लिकेशन लिखनी होगी. इस अथॉरिटी में उस ज़िले का डिस्ट्रिक्ट और सेशंस जज, पुलिस प्रमुख और अभियोग प्रमुख सदस्य होंगे. गवाह पर ख़तरा कितना गंभीर है, पुलिस उसकी जांच करेगी और फिर उस आधार पर फ़ैसला होगा.
विटनेस प्रोटेक्शन कार्यक्रम में गवाह की सुरक्षा के लिए पूर्ण गोपनीयता बरतने की बात कही गई है. उठाए जाने वाले कुछ क़दम हैं -
1.गवाह के ईमेल और कॉल को मॉनीटर किया जाएगा.
नेशनल लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी में अधिकारी और इस कार्यक्रम में जुड़ रहे नवीन गुप्ता के मुताबिक़ साल 2013 से 2019 तक 236 लोगों की तरफ़ से आए आवेदनों में से 160 को सुरक्षा दी गई.
लेकिन गवाहों की सुरक्षा को लेकर सवाल ख़त्म नहीं हुए हैं.
2.उनके घर में सुरक्षा उपकरण लगाए जाएंगे
साल 2015 में उजागर हुए व्यापम घोटाले में प्रशांत पांडे विस्लब्लोअर और गवाह हैं.
लंबे समय तक सुरक्षा एजेंसियों के साथ काम करते हुए उन्हें इस कथित घोटाले के बारे में पता चला था.
मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों में भर्ती और मेडिकल स्कूल परीक्षा में ऐडमिशन में परीक्षार्थियों के किसी और से पर्चा लिखवाने, परीक्षा पेपर लीक होने आदि को व्यापाम घोटाले का नाम दिया गया था.
व्यायम उस दफ़्तर का नाम था जो ये परीक्षाएं करवाती थी.
प्रशांत पांडे और भोपाल में बीबीसी के लिए रिपोर्टिंग करने वाले शुरैह नियाज़ी के मुताबिक़ पिछले कुछ सालों में अब तक इस मामले से कहीं न कहीं जुड़े क़रीब 50 लोगों की मौत हो चुकी है, और "मारे गए कई लोग या तो गवाह थे या फिर किसी न किसी तरह मामले से जुड़े रहे, हालांकि उनका इस मामले से जुड़ा हुआ साबित करना एक चुनौती थी."
प्रशांत के मुताबिक़ उनके ऊपर ख़ुद तीन चार हमले हो चुके हैं, एक बार उनकी पत्नी जिस कार को चला रही थीं और जिसमें उनका बेटा, पिताजी और दादी बैठे थे, उसे एक ट्रक ने साइड से इतनी तेज़ी से टक्कर मारी कि वो लंबी दूरी तक घिसटती चली गईं हालांकि किसी को चोट नहीं आई.
वो कहते हैं, "मुझे फ़ोन पर कई बार धमकी मिल चुकी है जिसमें मुझसे कहा जाता है कि मैं ज़्यादा स्मार्ट न बनूं. 50 मारे गए हैं, तुम 51वें हो जाओगे.
3.अस्थायी तौर पर उनका घर बदल दिया जाएगा.
4.उनके घर के आसपास पेट्रोलिंग की व्यवस्था होगी.
5.उनकी गवाही विशेष रुप से तैयार अदालत में होगी जहां लाइव वीडियो लिंक्स, वन वे मिरर, गवाह के चेहरे और आवाज़ को बदलने आदि की सुविधा होती है.
इस स्कीम में आने वाले ख़र्च के लिए कार्यक्रम में एक फंड बनाने की भी बात कही गई है.
दुनिया के कुछ विटनेस प्रोटेक्शन कार्यक्रमों में जहां गवाह की पहचान को स्थायी तौर पर बदलने का प्रावधान है, भारतीय विशेषज्ञ नवीन गुप्ता के मुताबिक़ ऐसा करने से गवाहों पर कई बार उलटा असर पड़ता है क्योंकि वो अपनी पुरानी ज़िंदगी से हमेशा के लिए कट जाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में कंपिटेंट अथॉरिटी बनाने को लेकर कितना काम हुआ है, ये साफ़ नहीं लेकिन बीबीसी से बातचीत में जानकारों और राज्यों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इस स्कीम को लागू करने, कंपिटेंट अथॉरिटी के गठन आदि पर काम चल रहा है.
जेसिका लाल हत्याकांड, प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड और नीतीश कटारा हत्याकांड में गवाहों के बयान बदलने से जांच पर असर के चलते साल 2013 में दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली में विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम की शुरुआत की बात की थी.
इसे 2015 में लागू कर दिया गया.
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में जिस विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम के लागू करने की बात की थी वो इसी दिल्ली विटनेस स्कीम पर आधारित थी.